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  1. नर नारायण वर्मा
    January 23, 2022 @ 5:25 PM

    सटीक बहुत ही अच्छा सामयिक सामाजिक राजनीतिक विश्लेषण किया गया है वास्तव में उत्तर प्रदेश में जो भी राजनैतिक पार्टियों द्वारा गठबंधन किये गए वे तत्कालिक सत्ता प्राप्ति के लिए किये गए कुछ का तो सामाजिक राजनैतिक सिद्धांतों एवं विचार धाराओं में छत्तीस का आकड़ा होते हुए भी तालमेल किये गए हैं जैसे भाजपा एवं अपना दल निषाद पार्टी गठबंधन.इनका उद्देश्य बड़ी पार्टी से मिलकर सत्ता में बने रह कर सत्ता सुख भोगना मात्र है जैसे निषाद पार्टी की मागों को पांच साल सत्ता में रहते हुए भी नहीं मानी फिर भी वे भाजपा के साथ है।

    सपा ने भी जो अभी तक गठबंधन किये सत्ता प्राप्ति के लिए किये सामाजिक न्याय दिलाने के उद्देश्य से नहीं जैसा कि तमिलनाडु में द्रमुक का तालमेल है जोकि सचमुच सामाजिक न्याय पर आधारित है और उनके फैसलों से भी सामाजिक न्याय प्रति ध्वनित हो रहा है स्टालिन का नीट में सवर्णों के 10%आरक्षण का विरोध और पिछड़ों के 27%आरक्षण की पुरज़ोर वकालत करना जिसके परिणामस्वरूप नीट में पिछड़ो को आरक्षण हासिल हो सका।

    सपा बसपा का 2019 का गठबंधन जरूर एक जबरदस्त सामाजिक गठबंधन बना था और अखिलेश और मायावती के भाषणों से लगभी रहा था कि यह एक दीर्घकालिक गठबंधन होगा मगर हार के बाद मायावती के द्वारा बिना किसी कारण गठबंधन तोड़ दिया गया इसका परिणाम यह हुआ कि पिछड़े वर्ग के साथ साथ प्रोग्रेसिव दलित वर्ग के लोगों काभी मायावती से मोहभंग हो गया और मायावती के तमाम विधायक टूट कर सपा में आ गए।

    जो पिछड़े और दलित वर्गों के लोग भाजपा को सत्ता से बाहर रखना चाहते हैं वे सब सपा की ओर झुक रहे हैं, सपा को पिछली गल्तियों से सबक लेते हुए सामाजिक न्याय की तरफ बढ़ना चाहिए।

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