देश, समाज, मनुष्य व सामाजिक नेतृत्व :: स्त्री, जाति व सामाजिक विद्रूपता

Vivek “सामाजिक यायावर”यह लेख “मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” पुस्तक का अंश है, जिसमें लेखक “सामाजिक यायावर” सामाजिक-नेतृत्व व सामाजिक-आविष्कारों की बात करता है। देश, समाज व मनुष्यनेतृत्वसामाजिक-नेतृत्व– जाति– स्त्री– शाब्दिक/कृत्रिम तार्किकता व प्रायोजित विद्वता बनाम कर्मकांड व संस्कृति — स्वयं के प्रति असंवेदनशीलता– स्वतः स्फूर्त सामाजिक-नेतृत्व की आवश्यकता देश, समाज व मनुष्यमनुष्य के बिना परिवार, समाज व देश नहीं हो सकता; जहां कहीं भी मनुष्य होगा वहाँ परिवार, समाज… Continue reading

स्त्री के प्रति हमारा नजरिया और शुचिता का आडंबर

Vivek “सामाजिक यायावर” “मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” पुस्तक से स्त्री को माहवारी झेलना पड़ता है, स्त्री गर्भवती होती है, स्त्री अपने गर्भ में बच्चे को नौ महीने पालती है और एक दिन स्त्री बच्चे को अपने यौनांग से धरती पर अवतरित कराती है। जीवन देने की क्षमता के कारण स्त्री के आंतरिक शरीर की बनावट पुरुष से भिन्न होती है। इसलिए पुरुष व स्त्री दोनो को ही स्त्री शरीर के… Continue reading

भारतीय जाति-व्यवस्था ‘श्रमशीलता’ को तिरस्कृत करने वाली सामाजिक-दासत्व व्यवस्था है

Vivek “सामाजिक यायावर”  भारतीय जाति-व्यवस्था कर्म आधारित व्यवस्था न होकर, श्रम को तिरस्कृत मानने वाली सामाजिक दासत्व को स्थापित करने वाली व्यवस्था थी। दरअसल जाति-व्यवस्था कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था हो ही नहीं सकती थी। वास्तव में जाति-व्यवस्था समाज की जड़ता, कुंठा, भ्रष्टाचार, भीड़तंत्र, सामाजिक दासत्व व श्रमशीलता को तिरस्कृत करने की मानसिकता का आधारभूत पोषक तत्व है। भारतीय जाति-व्यवस्था के नियम, विधियां व मान्यतायें आदि ‘श्रमशीलता’ को तिरस्कृत करने के आधार… Continue reading

पौराणिक मनगढ़ंत दैवीय कथाएं व वैदिक-काल की तथाकथित महानता बनाम मनुष्य की कर्मशीलता

पुस्तक “मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” सेलेखक- “सामाजिक यायावर”हर सभ्यता व धर्म की अपनी पौराणिक कथायें होती हैं, जो काल्पनिक होती हैं। सभ्यता के लोग काल्पनिक कहानियों को सच मानकर अपनी सभ्यता की गति अवरुद्ध कर देते हैं कभी-कभी तो गति का यह ठहराव उन लोगों को हिंसक तक बना बना देता है। किसी भी सभ्यता या धर्म की अधिकतर पौराणिक कथायें, उस सभ्यता के लोगों के मानसिक अनुगमन… Continue reading

जाति-व्यवस्था बनाम सोने की चिड़िया वाला सामाजिक-समृद्ध भारत

मित्र : भारत में ऐसी मान्यता है कि भारत शताब्दियों पहले इतना अमीर था कि सोने की चिड़िया कहा जाता था। इस मुद्दे पर आपका क्या मत है?  नोमेड : भारत में बहुत ऐसी मान्यताएं हैं जिनमें शताब्दियों पहले भारत दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देश था। मान्यताओं का क्या, जो भी प्रयोजित कर दिया जाए वही मान्यता बन जाती है। जिस भारत में कुल जनसंख्या के पाँच मे से चार हिस्सों को… Continue reading

सामाजिक न्याय :: जाति-व्यवस्था-सामाजिक-आरक्षण बनाम संवैधानिक-आरक्षण

पुस्तक “मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” से(सामाजिक यायावर ‘विवेक उमराव’ द्वारा लिखित यह पुस्तक प्रकाशन के ग्यारहवें महीने में ही पुनःमुद्रित करनी पड़ी थी) मित्र : आप संवैधानिक आरक्षण के समर्थक हैं?नोमेड : जी बिलकुल। मित्र : क्यों? नोमेड : क्योंकि संवैधानिक-आरक्षण, शोषक-वर्गों द्वारा शोषित-वर्ग के साथ सैकड़ों वर्षों तक लगातार प्रति क्षण की गई क्रूरता व बर्बरता का सक्रिय माफीनामा है। और साथ ही एकमात्र औजार है, जिससे जाति-व्यवस्था के पारंपरिक अन्याय को… Continue reading

भारतीय-दाम्पत्य जीवन व परिवार के व्यवहारिक मूल्य

जैसे हम मानव-निर्मित ईश्वर को वास्तविक ईश्वर माने हुए हैं, माने हुए हैं कि हमारी सभ्यता विश्व की सर्वश्रेष्ठ सभ्यता है। वैसे ही और भी बहुत कुछ हम यूं ही माने हुए हैं और माने हुए को मनवाने के लिए दूसरों को अपशब्द कहते हैं, अपमानित करते हैं। अपने द्वारा माने हुए को जबरन तथ्यपरक सिद्ध करने के लिए  दूसरों के प्रति स्वयं को हिंसक भी बनाते हैं। बिलकुल ऐसे ही… Continue reading