Vivek Umrao "सामाजिक यायावर"
कैनबरा, आस्ट्रेलिया
अपने भारतीय समाज में प्रदूषण की बात कीजिए तो लोग बहुत चौड़े से बताते हैं कि वे बहुत जागरूक हैं, इसलिए साल में दस-बीस-पचास पेड़ों को गढ्ढा खोदकर पौधारोपड़ कर देते हैं। कुछ लोग अपने घरों में दस-बीस-सौ-पचास गमलों में फूल व सब्जी भी उगा लेते हैं। स्कूलों में अंताक्षरी करवा देते हैं। किसी अधिकारी या नेता या सेलिब्रिटी को बुलवा कर भाषण करवा देते हैं, झंडा फहरवा देते हैं। टीवी चैनलों में प्रवचन देते हैं। कभी कभार झाड़ू लेकर खड़े हो गए। वर्कशाप आयोजित कर लीं। कुछ टीवी एंकर तो केवल इसलिए महान हो गए क्योंकि वे विभिन्न मुद्दों पर सरकारों की बुराई कर लेते हैं, क्योंकि उनके द्वारा ऐसा करना हमारे समाज के लोगों की सामंती मानसिकता व कुंठा को तृप्त करता है। जमीन पर बिना ठोस प्रयास किए केवल बुराई करना व समाधान के नाम पर हवाई लफ्फाजी ही महानता की कसौटी बन जाती है।
कुछ लोग तो ऐसे भी हैं कि किसी नदी किनारे बच्चों की पेंटिंग प्रतियोगिता, कुछ भाषण प्रतियोगिता, घर में चाय नास्ता करते हुए पर्यावरण पर कुछ चर्चा, पत्रकारों से वार्ता, बैनर लगवा दिया, पोस्टर चिपका दिए व किसी मैगसेसे पुरस्कृत या अन्य सेलिब्रिटी के आगे-पीछे डोलने को बहुत बड़ा पर्यावरण काम व विशेषज्ञता मान कर भयंकर दंभ में जीते हैं। दो-चार विदेशियों से हाथ मिला लिए तो और महान हो गए।
लेकिन क्या सच में ही इतने तामझाम वाले ये लोग, प्रदूषण को जानते समझते हैं… या स्वयं इन लोगों की भी जीवन शैली ऐसी होती है कि ये लोग भी पर्यावरण को भरपूर नुकसान पहुंचाते हैं, ऊपर से विडंबना यह कि यही लोग पर्यावरणविद होने की वाहवाही भी लूटते हैं।
दरअसल प्रदूषण फूल, पत्ती व जनसंख्या सेलिब्रिटिज्म इत्यादि से इतर वस्तु है। इसका समाज व लोगों की जीवन शैली, जीवन के प्रति सोच, मानसिकता व चले आ रहे सामाजिक संस्कारों से बहुत गहरा संबंध होता है। तकनीक, विज्ञान व सुविधाओं इत्यादि के प्रयोग करने के ढंग से होता है।
नीचे दिए गए एक मोटा-मोटी उदाहरण से कुछ मोटा-मोटी समझने का प्रयास करते हैं।
मध्यप्रदेश, भारत
क्षेत्रफल के अनुसार भारत का मध्यप्रदेश राज्य ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय राजधानी राज्य कैनबरा से लगभग 130 गुना बड़ा है। दोनों राज्यों के जनसंख्या घनत्व में बहुत अधिक अंतर नहीं है, मध्यप्रदेश का जनसंख्या घनत्व 240 प्रति वर्ग किलोमीटर तथा कैनबरा का जनसंख्या घनत्व 190 प्रति वर्ग किलोमीटर।
मध्यप्रदेश राज्य क्षेत्रफल की दृष्टि से बहुत बड़ा है, खूब पेड़ हैं, खूब जंगल हैं। राज्य के अधिकतर हिस्से में विकास पहुंचा ही नहीं है। सैकड़ों गांव विकास से अछूते हैं। मध्यप्रदेश में बहुत अधिक उद्योग भी नहीं हैं। अनेक नदियां हैं, चौड़ी व बड़ी नदियां भी हैं। ऊंची पर्वत श्रंखलाएं हैं। हजारों एकड़ क्षेत्रफलों वाले अनेक नेशनल रिजर्व हैं।
कैनबरा (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र), ऑस्ट्रेलिया
कैनबरा की जनसंख्या लगभग सवा चार लाख है। निवासियों के पास तीन लाख से अधिक कारें हैं। राष्ट्रीय राजधानी है तो सरकारी विभागों की गाड़ियां भी हैं। कई हजार बसें हैं। सामान लदाई ढुलाई व अन्य व्यवसायिक वाहन हो गए। मोटरसाइकिलें हो गईं।
लगभग हर घर व हर आफिस के हर कमरे में एसी लगे हैं। लगभग हर घर में घर को गर्म रखने वाले हीटर लगे हैं। लगभग हर घर में (जो भी जमीन पर बने हैं) लान-मोवर्स हैं जिनमें से अधिकतर पेट्रोल या डीजल से चलने वाले हैं। लगभग हर घर में कई-कई कम्प्यूटर व मोबाइल हैं। लगभग हर घर में रेफ्रीजेरेटर है, लगभग हर घर में वाशिंग मशीन है, लगभग हर घर में माइक्रोवेव व ओवन हैं।
बिजली कटौती बिलकुल नहीं होती। दस-बीस सालों में मेंटीनेंस के लिए कुछ देर के लिए की जाने वाली कटौती को छोड़कर एक सेकंड के लिए भी नहीं होती। पानी की सप्लाई एक सेकंड के लिए नहीं रुकती। घर या आफिस कितनी भी ऊंचाई पर हो, पानी की सप्लाई तेजगति से होती है।
कैनबरा में एयरपोर्ट है, रेलवे स्टेशन है। राजधानी होने के कारण प्रतिदिन सैकड़ों डोमेस्टिक फ्लाइट्स आती जाती हैं। प्रतिदिन लगभग दस हजार यात्री हवाई यात्रा करता है कैनबरा एयरपोर्ट पर।
कैनबरा के द्वारा ऊर्जा की खपत व गैस इमिशन की कल्पना कीजिए। कैनबरा के इस तरह के रहन-सहन के बावजूद पर्यावरण व प्रदूषण के संदर्भ में भारत का मध्यप्रदेश जैसा बहुत बड़ा व बहुत पिछड़ा राज्य भी कैनबरा से तुलना नहीं कर सकता। जबकि मध्यप्रदेश बहुत बड़े आकार में फैला हुआ है।
बहुत बड़े आकार में फैले हुए मध्यप्रदेश राज्य व कैनबरा राज्य की प्रदूषण तुलना नहीं की जा सकती बावजूद इसके कि जनसंख्या घनत्वों में थोड़ा सा ही अंतर है। मध्यप्रदेश में प्रदूषण की स्थिति कैनबरा की तुलना में बहुत अधिक भयावह है। फोटो में जिस समय व तापमान भी लगभग समान ही हैं। तापमान व समय भी कारण नहीं कहे जा सकते हैं।
जनसंख्या घनत्व व क्षेत्रफल प्रदूषण की भयावह स्थिति के लिए बहुत अधिक मायने नहीं रखता। बल्कि लोगों की सोच, मानसिकता, जीवन शैली मायने रखती है। यदि भारत को बचना है तो पूरे भारत के लोगों को पर्यावरण के प्रति अपनी सोच, मानसिकता व जीवन जीने के ढंग को बदलना होगा।
हमें यह भी समझना होगा कि अंतिम स्टेज का कैंसर सर-दर्द की सामान्य गोलियों से ठीक नहीं होता।
Vivek Umrao Glendenning "Samajik Yayavar"
- The Founder and the Chief Editor, the Ground Report India group
- The Vice-Chancellor and founder, the Gokul Social University, a non-formal but the community university
- World Peace Ambassador
- The Author, Books
He is an Indian citizen & permanent resident of Australia and a scholar, an author, a social-policy critic, a frequent social wayfarer, a social entrepreneur and a journalist;He has been exploring, understanding and implementing the ideas of social-economy, participatory local governance, education, citizen-media, ground-journalism, rural-journalism, freedom of expression, bureaucratic accountability, tribal development, village development, reliefs & rehabilitation, village revival and other.
For Ground Report India editions, Vivek had been organising national or semi-national tours for exploring ground realities covering 5000 to 15000 kilometres in one or two months to establish Ground Report India, a constructive ground journalism platform with social accountability.
He has written a book “मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” on various social issues, development community practices, water, agriculture, his groundwork & efforts and conditioning of thoughts & mind. Reviewers say it is a practical book which answers “What” “Why” “How” practically for the development and social solution in India.
हम विकास कि जिस नाव में बैठे हैं उसमें बैठने से पहले ही छेद लिए थे।
इसके अनुसार तो हम कहीं नहीं ठहरते |