Nishant Rana
जीत के बावजूद राहुल गांधी के EVM पर अपना स्टैंड पहले की तरह ही क्लियर करने वाले बयान का स्वागत किया जाना चाहिए।
हम अपने अधिकार की बात में भी राजनैतिक पार्टियों के भोपू की तरह बजने लगे है! हम भारतीयों की आदत है पक्ष और विपक्ष चुनने की इस चक्कर में कई बार हम अपना पक्ष भूल जाते है। लोकतंत्र और चुनाव किसी भी देश में वहां की राजनैतिक पार्टियों की बपौती नहीं होते है। भारत में भी नहीं है।
सत्ता के केंद्र में रहने वाले या फिर सत्ता प्राप्त करने वाले लोगों में कितने लोग है जो वास्तव में जनता के लिए सही नीतियां बनाने के लिए आते है। यह तो जन शक्ति है जो हर पांच साल में आपको सत्ता (शक्ति) से बेदखल कर सकती है यदि यह शक्ति जनता के पास न हो तो इन्हीं लोगों में से कितने लोग अपनी ओढ़ी हुई विनम्रता क्या नहीं छोड़ देंगे। शोषण करने में क्या कोई कोर कसर छोड़ेंगे !
शक्ति के बदलाव की यह ताकत हमें बहुत ही कम समय के लिए कई वर्षों के बाद मिलती है हमारे वोट से, चुनावी प्रक्रिया से। चुनाव ही है जो हमें हमारा सहीं गलत चुनने की आजादी देता है।
हमारा किसी पार्टी के पक्ष को समर्थन हमें कितना भी सुरक्षित महसूस करवाता हो, भले ही हमारा कितना भी मन करता हो कि चुनाव की जरूरत ही क्या है बस हमारा फलाना नेता ही सदा सदा के लिए बना रहे, लेकिन वास्तविकता यहीं है कि हमें हमारे इस भाव के मजबूत होने की शक्ति भी चुनने और चुने हुए को हटा देने के अधिकार से ही आती है, आप के पास शक्ति है इसलिए आपके भावों को तसल्ली देना या उन कामों को करना जिनके लिए आपने उन्हें चुना है उनकी मजबूरी है। यदि यह अधिकार न हो तो देव तुल्य नेता जी ठेंगा दिखाने में देर न लगायेंगे।
भले ही हम अपने अपने पक्ष पर बहुत कट्टरता से जुड़े हो, पसन्द ना पंसद के आधार पर रोज एक दूसरे का सिर फोड़ते हो लेकिन यह अधिकार ही हमसे ले लिया जाए या फिर चुनाव होने का चुने जाने की प्रक्रिया में हमें केवल क्या दिखावे के लिए शामिल किया जाए !
कांग्रेस जब सत्ता में थी बीजेपी ने EVM का खूब विरोध किया बाकायदा किताब तक लिखीं गई लेकिन सत्ता में मौजूद कांग्रेस के कान पर जूं तक न रेंगी। वहीं जब बीजेपी सत्ता में आई तो कांग्रेस ने हार EVM का रोना रोया, भाजपा ने अब EVM को पाक साफ कर दिया।
अब ऐसा तो है नहीं कि दोनों ही झूठ बोल रहे हो, दोनों ही सत्ता का स्वाद चख चुके है सो EVM में क्या खेल हो सकता है को भी करीब से जानते होंगे तभी तो सत्ता प्राप्त होते ही EVM दोनों पार्टी के लिए सही हो जाती है और सत्ता जाते ही पहला शक EVM पर जाता है।
लेकिन हम क्या अपनी शक्ति के लिए क्या केवल राजनैतिक पार्टियों के विरोध या सवाल करने तक ही सीमित है!
EVM के पक्ष में कुछ और भी तर्क सुनने को मिलते है जिन्हें सुनकर लगता है कि यह लोग अभी जानते ही नहीं है कि भारत में वोटिंग में क्या क्या होता है या जानबूझकर आंख बंद रखना चाहते है, आइए देखते है ऐसे ही तर्कों के पीछे कितनी गहराई है या केवल एक सतही बातों को बहुत बड़ा करके पेश किया जा रहा है-
वोट गिनने की सहूलियत को बार बार गिनाया जाता है
पूरी चुनावी प्रक्रिया कई महीने चलती है क्या उतने दिन बिना परेशान हुए लोग काम करते है।
पुलिस में सिपाही पूरा पूरा दिन भाग दौड़ वाली पब्लिक डीलिंग वाली ड्यूटी करते है। सेना के जवान और न जाने कितने विभागों के लोग दिन रात एक करके अपने अपने काम करते है।
यदि फिर भी लगता है कि वोट गिनना जिस भी विभाग के जिम्मे आता है बहुत भारी काम है तो इसके लिए अलग से वैकेंसी निकाली जाए। आप 1000 जगह निकालिए लाखों आवेदन न आए तब कहियेगा।
और जब किसी भी देश के लिए चुनाव और चुनावी प्रक्रिया का एक दम निष्पक्षता से होना बहुत ही गंभीर मसला हो तो थोड़ी बहुत देर होने में भी क्या बुराई है।
बैलेट पेपर पर बूथ कैप्चरिंग होती थी
जो समय के साथ बहुत हद तक सुधर चुकी थी लेकिन सबको पता है बूथ कैप्चरिंग, फर्जी वोटिंग EVM पर भी वैसे ही होती है। बैलेट पेपर में बदलाव में बहुत ही छोटे स्तर पर किसी विधानसभा क्षेत्र के भी एक आध जगह पर ही सम्भव था।
EVM पर यह खतरा राष्ट्रीय स्तर पर सभी के सभी बूथ पर सम्भव है (यहां रिमोट कंट्रोल , ब्लूटूथ, हैकिंग जैसी टटपूंजिया चीज की बात नहीं हो रही)
VVPAT से सुधार संभव है
VVPAT भी उन खतरों से सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं देता है जिनकी अभी तक बात होती आई है और यदि गिनती करके ही मिलान करना है तो बैलेट पेपर गिनने में ही क्या बुराई है?
और यदि गिनती नहीं करनी है, केवल मतदाता को गोली देनी है तो जरूरी नहीं है प्रिंट होकर जो आया हो वहीं इनपुट में गया हो।
EVM बहुत सुरक्षा में और कैमरों की निगरानी में रहती है
बैलेट पेपर भी बहुत सुरक्षा और कैमरों की निगरानी में रखे जा सकते है।
EVM की हैकिंग होने की संभावना बहुत कम है, लेकिन संभावना है। यह पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है इस बात को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने निर्णय में माना है।
टेक्नोलॉजी को नकारना, विज्ञान में पीछे जाना मूर्खता है और जब ऑनलाइन मनी ट्रांसक्शन और ATM में लोगों को भरोसा हो सकता है तो EVM को भी भरोसे मंद बनाया जा सकता है
दोनों की तुलना नहीं की जा सकती। दोनों बिल्कुल अलग चीजे है।मनी ट्रांजेक्शन फ्रॉड पकड़ में आ जाता है क्योंकि हमें पता होता है कि अकॉउंट में कितना रुपया है, ट्रांजेक्शन हिस्ट्री का रिकॉर्ड रहता है। जबकि EVM में जो भी संख्या दर्ज हों रही है उसका पता नहीं चल सकता कि डिजिट किस तरह मूव कर रही है या अंको को किस तरह से मूव करने के लिए प्रोग्राम किया गया है।
बैलेट पेपर पर आपको पता है आपका ठप्पा कहीं लग गया तो लग गया। अब कोई पूरा बैलेट बॉक्स ही बदले तो अलग बात है। पूरा बैलेट बॉक्स बदला जा सकता है तो EVM भी बदली जा सकती है।
लेकिन EVM आपको भरोसा नहीं दे सकती कि आपने जो बटन दबाया है वोट वहीं दर्ज हुआ हो।
मत दर्ज करने से लेकर परिणाम तक के बीच का छिपाव ही इसका प्रयोग लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बनता है.
और EVM को इससे अधिक पारदर्शी बनाने का मतलब है मतदाता या चुनाव की गोपनीयता को भंग करना.
EVM का प्रयोग न करने को विज्ञान में पीछे जाना ऐसे जता दिया जाता है जैसे केवल EVM के प्रयोग न करने के कारण सीधे पाषाण युग में पहुँच जायेंगे। विज्ञान में आगे बढ़ना है तो EVM भी क्यों सीधे मोबाइल आदि से ही मताधिकार का प्रयोग हो जाया करे इतने तामझाम की भी क्या जरूरत है !
वोटों की गिनती के अलग EVM कोई नई सहूलियत नहीं देता है।
और केवल गिनती की सहूलियत के लिए लोकतंत्र पर खतरे को नजरंदाज तो नहीं ही किया जा सकता है.
चलते-चलते :-
असल सवाल तो EVM पर हमारा होना चाहिए। भाजपा को सौ साल तक हम चुने या कांग्रेस मुक्त भारत हम करे यह अधिकार जनता के पास हमेशा रहना चाहिए लेकिन जब एक चीज निष्पक्षता, स्पष्टता पर हमें शक है भले ही हमारी मूर्खता के कारण हमें शक है, हम नहीं हुए उतने डिजिटल की मशीन में घुस कर देखे कि कौन से प्रोग्राम चिप किस तरह से काम कर रहे है, एक एक वोट पर डिज़ाइन है या फिर सौ-हज़ार या फिर जो भी संख्या निर्धारित है की वोट संख्या के बाद हर तीसरे या पांचवे वोट पर प्रोग्राम किया हुआ है. चिप ही तो है किसी भी तरह से किसी भी संख्या के बाद से प्रोग्राम कि जा सकती है।
हो सकता है इलेक्शन कमीशन के प्रमुख तक को न पता हो कहाँ क्या कैसे कब डिज़ाइन किया हुआ है, तब उस चीज को जबर्दश्ती हम पर थोपने का कारण क्या है !
Nishant Rana

Nishant Rana
Is our election commission independent from political influence ……..Before doing anything thing else we must have to ensure autonomy of such institutions …… Otherwise before making the ground democratically fertile taking any step is not making sense to our democracy
एकदम ठीक लिखे आप|
क्षमा चाहूंगा में आपके मत से सहमत नहीं हूं बंधुवर