Vivek "सामाजिक यायावर"
मुझसे बहुत लोग असहमत रहते हैं इसके बावजूद मेरा दृढ़ता पूर्वक मानना है कि बस्तर में रमण सिंह जी के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ प्रशासन संघर्ष-समाधान के लिए दीर्घकालिक रचनात्मक समाधान-प्रयासों के साथ प्रयासरत है। समाधान के लिए किए गए प्रयासों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह होता है कि जो जमीन पर कार्य करने जा रहा है, वह व्यक्ति कैसा है, उसकी सोच, उसकी मानसिकता, उसकी क्षमता, उसका अपना व्यक्तिगत संकल्प, इच्छाशक्ति व दृढ़ता का स्तर क्या है। बस्तर संभाग के जिलों में ऐसे कई अधिकारी पहुंचे जिन्होंने अपने जीवन की सुरक्षा को ताक पर रखते हुए रचनात्मक-समाधान की ओर के प्रयासों के लिए वास्तव में जमीनी इतिहास रच दिया। ऐसे अधिकारियों को बस्तर में भेजे जाने के लिए, उनको प्रयास करने देने के लिए, दिशा-निर्देशन के लिए, प्रोत्साहन आदि के लिए निःसंदेह मुख्यमंत्री रमण सिंह जी, उनकी सलाहकार टोली व नौकरशाह आदि धन्यवाद के पात्र हैं।
आधुनिक बस्तर में इतिहास रचने वाले अधिकारियों में एक नाम टामन सिंह सोनवानी व उनकी टोली का आता है। टामन सिंह सोनवानी व उनकी टोली के कामों की तासीर समझ पाने के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि उन्होंने काम किन परिस्थितियों में किया और कर रहे हैं।
टामन सिंह सोनवानी लगभग ढाई साल पहले बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले के जिलाधिकारी बनाए गए। नारायणपुर जिला क्या है, इस जिले में जिलाधिकारी या प्रशासन में होने का मतलब क्या है, यह समझने के लिए नारायणपुर जिला जिसके कुल क्षेत्रफल का लगभग 90% भाग घना जंगली क्षेत्र है, के “अबुझमाड़” को समझना पड़ेगा।
“अबुझमाड़”
"अबुझमाड़", छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर क्षेत्र में लगभग चार हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का एक ऐसा इलाका जिसे आधुनिक काल में भारत में आदिवासियों का वास्तविक घर कहा जा सकता है जो बाहरी दुनिया से अछूता है। बाहरी दुनिया से कितना अछूता है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सन् 2009 में मुख्यमंत्री रमण सिंह जी के निर्देश पर छत्तीसगढ़ सरकार ने इस क्षेत्र को प्रतिबंधित क्षेत्र के दायरे से मुक्त किया। अबुझमाड़ क्षेत्र कई दशकों तक प्रतिबंधित क्षेत्र रहा, जो लोग इस क्षेत्र के नहीं थे उन लोगों का प्रवेश इस क्षेत्र में प्रतिबंधित रहा।
यह क्षेत्र आजादी के कुछ दशकों बाद आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए प्रतिबंधित घोषित किया गया, इसलिए बाहरी दुनिया से अछूता हो गया हो, ऐसा नहीं है। अंग्रेज जिन्होंने दुनिया के कई देश खोजे, उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों को खोज लिया उन अंग्रेजों के शासन काल में भी लगभग डेढ़ सौ साल पहले जमीनी सर्वे किए जाने के बावजूद यह क्षेत्र अपवर्जित घोषित रहा।
आदिवासियों की स्थानीय भाषा में “अबुझमाड़” का मतलब अज्ञात पहाड़ियां होता है। बहुत अधिक घने जंगलों, पहाड़ियों व इन्द्रावती नदी के कारण अबुझमाड़ बाहरी दुनिया से सदैव ही अलग थलग रहा है। बाहरी दुनिया से पूरी तरह अछूते अबुझमाड़ क्षेत्र में पहुंचने के लिए साधन केवल दुर्गम जंगली रास्ते रहे हैं इसलिए यहां प्रशासन की पहुंच तक नहीं रही, विकास की योजनाओं का पहुंचाना तो कल्पनातीत बात रही है। यह सबसे प्रमुख कारण रहा कि यह क्षेत्र माओवाद का सबसे मजबूत व मुख्य गढ़ बन गया।
अबुझमाड़ क्षेत्र में अभी भी सिर्फ पैदल व साइकिल से ही पहुंचना संभव है। माओवादियों ने अबुझमाड़ जो उनका मुख्य गढ़ है को प्रशासनिक पहुंच से सुरक्षित करने के लिए यहां पहुंचने वाली जंगली पंगडंडियों वाले रास्तों में विस्फोटक सुरंगों (लैंड माइंस) आदि का प्रयोग बहुतायत से किया, ताकि प्रशासन व सुरक्षा बल यहां तक न पहुंच सकें।
टामन सिंह सोनवानी व उनकी टीम के कार्य
जिन इलाकों में कार, बस, जीप, मोटरगाड़ी आदि पहुंचने के रास्ते ही नहीं उन इलाकों में जिलाधिकारी द्वारा प्रशासन की टोली के साथ माओवादियों के धमकी देने के बावजूद पैदल व साइकिल आदि से किसी तरह पहुंचते हुए, माओवादियों के झंडा बैनर लगे स्थानों में अपनी जान की बिना परवाह करते हुए बैठकर आदिवासियों के साथ विकास की योजनाओं के संदर्भ में चर्चाएं की, समाग्री वितरण कराया, डाक्टरों की टोलियों को भी साथ ले जाकर चिकित्सा शिविर कराए।
माओवादियों की समानांतर सरकार वाले इलाकों में जाकर आदिवासियों से विकास कार्यों व योजनाओं की चर्चा करना, उनका विश्वास अर्जित करके विकास के कार्यों को इतने दुर्गम स्थानों पर उनके दरवाजे तक पहुंचाना; निरंतर प्रयास, संकल्पशक्ति, इच्छाशक्ति, प्रशासनिक कुशलता व टोली भावना के साथ काम करने का ही परिणाम हो सकता है।
आदिवासियों का विश्वास जीतने के लिए पेयजल, चिकित्सा शिविर, सोलर-ऊर्जा वाली लाइट आदि जैसी मूलभूत सुविधाओं से शुरुआत की गई। इन सुविधाओं का विरोध माओवादी भी नहीं कर पाए क्योंकि उनको भी पानी व प्रकाश आदि चाहिए। इन सुविधाओं से बढ़ते हुए कृषि, आर्थिक विकास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) व 20 वर्ष पहले विद्युत वितरण की योजनाओं को माओवादियोँ द्वारा ध्वस्त किए जाने के बाद, आज 20 वर्ष पश्चात उन योजनाओं को चलाने की स्थिति तक पहुंचे।
अब स्थिति यह है कि सड़कों का भी निर्माण शुरू हो रहा है, पुल और पुलियाएं बन रही हैं जिसके कारण आर्थिक विकास व सार्वजनिक वितरण प्रणाली को और बेहतर कर पाने में मदद मिल रही है तथा शताब्दियों से अपवर्जित इस इलाके को बाहरी दुनिया से जोड़ा भी जा सकेगा। इन सड़कों के निर्माण में मुश्किलों का अनुमान लगाने के लिए एक उदाहरण यह समझा जाए कि सिर्फ 26 किलोमीटर सड़क के निर्माण के लिए 23-24 पुल बनाने पड़ते हैं, कई घाट बनाने पड़ते हैं, औसतन लगभग हर एक किलोमीटर पर एक पुल। पुल व सड़क बनाने की सामग्री, यंत्र, इंजीनियर, मजदूर आदि का पहुंच पाना वह भी ऐसे दुर्गम व अशांत क्षेत्र में।
नारायणपुर जिले में 176 राजस्व ग्रामों सहित कुल लगभग 400 गांव हैं। जिनमें से अबुझमाड़ क्षेत्र के 100 से अधिक गांवों में तामन सिंह सोनावनी व उनकी प्रशासनिक टोली द्वारा रचनात्मकता का इतिहास लिख दिया गया है। इन गांवों को जोड़ने के लिए, संपर्क में लाने के लिए पुल-पुलियों का बहुत अधिक निर्माण कराया गया है।
स्वास्थ्य व पेयजल :
आदिवासी लोग नदियों, चुओं, नालों, पहाड़ी झरने से आदि से पानी ढोकर घर लाते थे घरेलू प्रयोग के लिए, यही पानी पीते भी थे। टामन सिंह सोनवानी ने 100 से अधिक गांवों में सोलर-पंप लगवाकर पेयजल उपलब्ध करवाया। हर गांव से कुछ युवाओं को सोलर-पंप का प्रशिक्षण दिया गया ताकि वे सोलर-पंप का संचालन व देखभाल कर पाएं। इन गांवों में सोलर ऊर्जा से प्रकाश की व्यवस्था भी की गई है।
सीमित वनोपज पर निर्भर आदिवासी समाज के बच्चे, महिलाए व वयस्क सभी कुपोषित हैं। तामन सिंह ने गर्भवती महिलाओं व बच्चों को कुपोषण से बचाने का बीड़ा उठाया और गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं व बच्चों को सुपोषित आहार उपलब्ध कराने की व्यवस्था बनाई। स्वास्थ्य की जांच होती है, जांच में जिन पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है उनके सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं।
दुर्गमता के कारण अबुझमाड़ के गांवों में पहुंचना सरल नहीं, इसलिए दुपहिया वाहनों में चलंत चिकित्सा केंद्र संचालित किए जाते हैं। चिकित्सा से संबंधित जितना आवश्यक सामान दुपहिया में लाद पाना संभव होता है उतना लाद कर गांव-गांव पहुंच कर लोगों को चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराई जाती है। जहां जहां पुल पुलिया बनने से संपर्क रास्ते बनते जा रहे हैं वहां और बेहतर चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराई जाने लगीं हैं।
आदिवासी युवती “सुकमा बड्डे” :
अबुझमाड़ के इलाके की एक आदिवासी लड़की, वह पहली माड़िया लड़की है जिसने नर्सिंग की पढाई करने के बाद अपने ही समाज के लोगों के लिए काम करने की इच्छा जाहिर की तो टामन सिंह सोनवानी ने सहयोग किया। सुकमा बड्डे नाम की यह पढ़ी लिखी युवती जिसने कितनी भयंकर तकलीफों से पढाई पढ़ी होगी, किसी शहर में सरकारी नौकरी करते हुए चकाचौंध, शहर में घर, कार, अपनी संतानों की बेहतर शिक्षा आदि सुविधाओं का भोग कर सकती थी। लेकिन उसने स्वेच्छा से यह निर्णय लिया कि उसको अबुझमाड़ के बिना सुविधा वाले दुर्गम गावों में अपने समाज के स्वास्थ्य के लिए काम करना है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली, PDS :
दुर्गम स्थानों व रास्ते न होने के कारण आदिवासी लगभग 60 किलोमीटर पैदल चलकर 35 किलो का राशन लेने आते थे। केवल राशन लेने आने के लिए आने जाने में कई-कई दिन लगते थे। जंगली व पहाड़ी रास्तों में 35-35 किलो का वजन शरीर पर लाद कर चलना पड़ता था। टामन सिंह सोनवानी ने सार्वजिनक वितरण प्रणाली के केंद्र लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित करने की योजना बनाई। प्रशासन के द्वारा अबुझमाड़ में इतने अंदर की दूरी तक घुस कर काम करने की कुव्वत इसलिए आ पाई क्योंकि वह आदिवासियों का विश्वास जीत पाने में सफल रहा और योजनाओं को वास्तव में आदिवासियों तक पहुंचाया।
कृषि, पानी, लिवलीहुड कालेज, दुग्ध-उद्योग व रोजगार के अवसरों से आर्थिक विकास :
अबुझमाड़ में आदिवासी पेंडा कृषि करते आए हैं। पेंडा कृषि का मतलब जो अपने आप उग वो उग गया, बीज को जमीन पर ऐसे ही बिखेर दिया जो उगना हुआ वह उग गया। पेड़ों से बीज गिर कर जिन बीजों को स्वतः उगना हुआ वे उग गए। वन संपदा को बीन कर एकत्र करना। यही सब मिलाजुला कर कहलाती है पेंडा कृषि।
प्रशासन ने आदिवासियों को कृषि का प्रशिक्षण दिलवाया। अब किसान मक्का लगा रहे हैं, सब्जियों की खेती कर रहे हैं, बागवानी लगा रहे हैं। किसानों को बाजार उपलब्ध करवाया जा रहा है। किसानों के परिवारों को पोषण वाला भोजन प्राप्त हो रहा है और आय भी हो रही है। आर्थिक विकास हो रहा है। क्रय-विक्रय शक्ति बढ़ रही है।
किसानों को खेती करने के लिए पानी की कमी न हो, कृषि योग्य जमीन उपलब्ध हो इसलिए नदीं नालों में जगह-जगह छोटे-छोटे चेकडैम बनवाए गए हैं ताकि पूरे वर्ष खेती करने के लिए किसानों को पानी उपलब्ध रहे।
आदिवासी युवाओं की समितियां बनाकर डेयरी खोलीं गईं हैं। गायों की देखभाल करने का प्रशिक्षण दिलवाया गया है। दूध के विपणन के लिए आदिवासी बच्चों के लिए विद्यालयों, छात्रावासों व सुरक्षा बलों के कैपों आदि में आपूर्ति होती है।
विभिन्न प्रकार के रोजगारों के लिए प्रशिक्षण देने के लिए जिला मुख्यालय में लिवलीहुड कालेज की स्थापना की गई। यहां से निकली कई आदिवासी महिलाओं को बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बैंगलोर जैसे शहरों में नौकरियां दीं। इनमें से कुछ वापस आकर लिवलीहुड कालेज में ही प्रशिक्षण देने का काम करने लगीं क्योंकि उनको महसूस हुआ कि उनको अपने समाज के लिए काम करना चाहिए।
जंगल में रहने के कारण, असुविधाओं में रहने के कारण उनके शरीर का स्टेमिना अच्छा होता है लेकिन सुरक्षा बलों की फिजिकल फिटनेस आदि जैसी परीक्षाएं कैसे उत्तीर्ण करें यह कुछ पता नहीं होता। इसलिए जिला मुख्यालय में सुरक्षा बलों में भर्ती होने की इच्छा रखने वाले युवाओं के लिए छात्रावास सहित प्रशिक्षण केंद्र बनाया गया है। प्रशिक्षकगण व प्रशिक्षुगण यहीं रहते हैं और सिखाते सीखते हैं। सरकार ने बस्तर के आदिवासियों के लिए बस्तर बटालियन की स्थापना की है। यह भी यहां के आदिवासियों को दुनिया व मुख्यधारा से जोड़ने का दूरदर्शी प्रयास है।
दुर्गम गांवों में स्वयं मोटरसाइकिल चलाकर लोगों के पास पहुंचने वाले नारायणपुर के जिलाधिकारी तामन सिंह सोनवानी कहते हैं कि रेडियो बहुत कुछ बदलता है। रेडियो बहुत सहजता से प्रयोग किया जा सकता है, बहुत तामझाम की जरूरत नहीं होती, हाथ में लेकर टहलते हुए भी सुना जा सकता है। इसलिए गावों में उन्होंने युवाओं को रेडियो उपलब्ध कराए हैं ताकि उन तक विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सरकारी योजनाओं की जानकारियां पहुंचती रहें। लोकतंत्र पर उनका विश्वास बने। देखने में आया है कि प्रधानमंत्री की मन की बात व मुख्यमंत्री का गोठ आदि कार्यक्रमों को भी सुनते हैं, फिर सहमति असहमति के साथ आपस में चर्चा करते हैं। रेडियो को कैसे संवाद का सशक्त माध्यम बनाया जा सके ऐसी योजनाओं पर विचार व काम चल रहा है।
सुपर मार्केट :
अबुझमाड़ के ओरछा नामक स्थान में जो ब्लाक मुख्यालय भी है, में सुपर मार्केट की स्थापना की गई। सुपर मार्केट की स्थापना के पहले स्थानीय आदिवासी युवाओं को सामान रखरखाव, लेखा-जोखा व विपणन आदि का प्रशिक्षण दिया गया। सुपर मार्केट का संचालन करने के लिए आदिवासी युवाओं की समिति बनाई गई।
सुपर मार्केट की स्थापना दो प्रमुख कारणों से की गई। एक, दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुओं को सरलता से उपलब्ध कराने के लिए जिनको लाने के लिए दुर्गम रास्तों में बहुत तकलीफें झेल कर मुख्यालय के बाजार तक आना पड़ता था। दो, किसान कृषि-उत्पाद का सरलता से विपणन कर सके, आदिवासी शिल्प आदि का सरलता से विपणन हो सके।
रोजमर्रा के सामानों, वन-उपज, कृषि उपज, आदिवासी शिल्पकला आदि सामानों संग्रह, विपणन आदि करने के लिए सुपर मार्केट में सुपर मार्केट में गोदाम व दुकान की स्थापना की गई। इसी तरह की सुपरमार्केट अबुझमाड़ के अन्य स्थानों में भी स्थापित करने की योजनाओं पर काम चल रहा है।
शिक्षा :
माओवादी इलाकों में बच्चों व बच्चियों को माओवादी प्लाटून या दलम में भर्ती करने के लिए ले जाया जाता है। स्कूलों व शिक्षा आश्रमों को चलने नहीं दिया जाता है। गांव बहुत दूर-दूर व विरले बसे हुए हैं। इसलिए ओरछा ब्लाक में अंदर के गावों में एक प्रयोग किया गया है। आठ अलग-अलग गांवो के स्कूलों व आश्रमों को मिलाकर एक स्थान पर बड़े आश्रम की स्थापना करके “आठ-आश्रम” बनाया गया है। ये आठ गांव 25 से 30 किलोमीटर की दूरी पर थे, बहुत ही दुर्गम गांव।
स्कूलों व आश्रमों में आधुनिक तकनीक वाली टेलीविजन भी लगवाएं गए हैं ताकि बच्चे देखकर, सुनकर सीख सकें। बाहरी दुनिया से अनजान न रहें। सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं ताकि बच्चों का व्यक्तित्व विकास हो, आत्मविश्वास विकसित हो।
दसवीं बारहवीं के बच्चे शिक्षक न होने की वहज से गणित व विज्ञान आदि जैसे विषयों में बहुत कमजोर रहते हैं। शिक्षक बीहड़ों में जाकर नहीं पढ़ाना चाहते हैं, इसलिए आउटसोर्सिंग करके नारायणपुर जिला मुख्यालय में कुछ भवन दिए गए हैं जहां छात्र व शिक्षक रहते हुए पढ़ते व पढ़ाते हैं। एक छात्र ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की मुख्य प्रवेश परीक्षा में अर्हता प्राप्त की।
चलते-चलते
टामन सिंह सोनवानी से यह पूछने पर कि इतने असंभव क्षेत्र में इतने काम कैसे कर पाए। वे विनम्रता से जवाब देते हैं कि उन्होंने नहीं किया। ये काम इसलिए हो पाए क्योंकि प्रशासन में उनको मिली टोली बहुत अच्छी है और काम करना चाहती है। उन्होंने कहा कि पुलिस की सोच भी रचनात्मक समाधान की है इसलिए प्रशासन के साथ तालमेल अच्छा व संपूरकता का रहता है। टामन सिंह सोनवानी उपलब्धियों के श्रेय का बड़ा हिस्सा पुलिस व उनके अधिकारियों को देते हुए कहते हैं कि सिविक एक्शन प्रोग्राम के प्रति पुलिस बहुत गंभीर है। इस कार्यक्रम के तहत पुलिस अधीक्षक गांव-गांव प्रशासन के साथ लोगों से मिलने जाते हैं, चर्चा करते हैं, संभव हुआ तो वहीं समस्याओं का निराकरण करने का प्रयास करते हैं, यहां तक कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को व्यवहारिक रूप से सुदृढ़ व सरल बनाने में भी पुलिस का योगदान रहा।
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About author:
Vivek Umrao Glendenning "SAMAJIK YAYAVAR"
- The Founder and the Chief Editor, the Ground Report India group
- The Vice-Chancellor and founder, the Gokul Social University, a non-formal but the community university
- The Author, Books
He is an Indian citizen & permanent resident of Australia and a scholar, an author, a social-policy critic, a frequent social wayfarer, a social entrepreneur and a journalist;He has been exploring, understanding and implementing the ideas of social-economy, participatory local governance, education, citizen-media, ground-journalism, rural-journalism, freedom of expression, bureaucratic accountability, tribal development, village development, reliefs & rehabilitation, village revival and other.
For Ground Report India editions, Vivek had been organising national or semi-national tours for exploring ground realities covering 5000 to 15000 kilometres in one or two months to establish Ground Report India, a constructive ground journalism platform with social accountability.
He has written a book “मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” on various social issues, development community practices, water, agriculture, his groundworks & efforts and conditioning of thoughts & mind. Reviewers say it is a practical book which answers “What” “Why” “How” practically for the development and social solution in India.