छत्तीसगढ़ राज्य के दंतेवाड़ा जिले में एक गांव है जहां की महिलाओं नें एक मुठ्ठी चावल जमा करना शुरू किया फिर हांडी भर जानें पर गांव भर से हांडियां जमा कर चावल एकत्र करके बेचकर कमाये पैसों से कुटीर उद्योग का काम शुरू किया।
अचार, बड़ियां, कपड़ा सिलना आदि काम करतीं हैं। ईंट भी बनातीं हैं, खेती भी करतीं हैं।
एक मुठ्ठी चावल जमा करना आज भी जारी है जबकि इनके समूह में लाखों रुपये का ट्रांजेक्शन होता है।
इनके पास जनलोकपाल पर आश्रित होकर अपनीं प्रगति की कल्पना करते हुये सरकारी तंत्र को गरियानें की कोई महान-क्रांतिकारिता नहीं।
ये लोग तो जो इनसे हो सकता है वह भी खालिस अपनें दम पर बिना बाहरी सहायता के, उद्योग करतीं हैं।
आप समझदार लोग जो मर्जी चिल्लायें लेकिन मुझ जैसे गवांर का बहुत स्पष्ट रूप से मानना है कि देश में बड़े बदलाव इन जैसी उद्यमी महिलाओं से ही होगें न कि मुद्रा आधारित भ्रष्टाचार की बात करनें वाले जादुई जन-लोकपाल आदि राजनैतिक सत्ता प्राप्ति के चोचलों से।
काश भारत के लोग व मीडिया इन जैसी अंगूंठा छाप किंतु दूरदृष्टि रखनें वाली महिलाओं के साथ खड़े हो पानें की सोच, समझ, साहस व सामाजिक इमानदारी रखते होते।
………….… काश …..