होमई व्यरवाल्ला भारत की पहली महिला पेशेवर प्रेस-फोटोग्राफर थीं और उन राजनेताओं से कम प्रसिद्ध न थीं जिनकी तस्वीरें उन्होंने उतारी. फोटोग्राफी के प्रति उनका प्रेम भी अपने पति श्री मानेकशा व्यरावल्ला के सानिध्य और प्रेम में अंकुरित हुआ. मानेकशा खुद एक पेशेवर फोटोग्राफर थे और उन्होंने होमई को फोटोग्राफी की बुनियादी बारीकियों से परिचित कराया. संयोगवश 1930 फोटो-जगत का एक ख़ास दौर था जब होमई ने फोटोग्राफी जगत में प्रवेश किया. नयी तकनीकी ने कैमरे को स्टूडियो की बंदिशों से से मुक्त कर दिया था और भारतीय फोटोग्राफर आत्मनिर्भर होने लगे थे. “द बॉम्बे क्रोनिकल” और “द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया” ने, जो छायाचित्रों को विशेष महत्व देते थे, होमई के छायाचित्रों को अपने पन्नों में स्थान दे एक नयी पहचान दी.
होमई ने आज़ादी से पहले और बाद के सैकड़ों अनमोल पलों को अपने कैमरे में कैद किया. जवाहरलाल नेहरु उनके पसंदीदा विषय थे. फ्लैश चमकने के कारण एक बार उन्हें गांधी जी की डांट भी खानी पड़ी कि इस लड़की को तब तक चैन नहीं मिलेगा जब तक यह मुझे अँधा न कर दे. ख़ास क्षणों को बगैर चूके तस्वीरों में जज़्ब करने की गज़ब की दृष्टि थी होमई के पास जो हमेशा-हमेशा के लिए देशवासियों के लिए धरोहर बनी रहेगी.
1970 में होमई ने फोटोग्राफी से सन्यास ले लिया.