चारुस्मिता

​Rajeshwar Vashistha मैं किसी पेड़ की तरह उगना चाहता हूँ! मेरे पास मजबूत जड़ है, तना भी और पत्ते भी पर मुझे नहीं मालूम कि मैं पीपल बनूँ, नीम बनूँ, बुरूँस बनूँ या देवदार?बस मैं एक ऐसा जादुई पेड़ बनना चाहता हूँजिस पर चिड़िएँ, गिलहरियाँ, तितलिएँ और कोयल सब दिन-रात आएँ। चारुस्मिता ने कहा – सुनो पेड़, मुझे तुमसे प्रेम हो गया है। मेरे पास एक भरी-पूरी दुनिया है,खूबसूरत आँखें और… Continue reading

विवशता के क्षणों में

​Rajeshwar ​Vashistha पिता चाहते थे जब वह शाम को थक हार कर घर लौटें मैं बिना सहारे अपने पावों पर चल करदरवाज़े तक आऊँ और वह मुझे गोद में उठा लें।पर बहुत दिनों तक ऐसा हो नहीं पाया। निराश पिता कुछ देर मुझे सहारा देकर चलातेमाँ की गोद में डालते और फिर मुँह-हाथ धोकर चौंके में भोजन के लिए बैठ जाते। पंखा झलते हुए दादी धीरे से कहती – धीरज रखो,… Continue reading

आचार्य कौटिल्य की विषकन्या

Rajeshwar Vashistha बहुत पुरानी कहानी हैकहते हैं मेरे जनक थे आचार्य चाणक्यअर्थशास्त्र में उन्होंने मेरी संकल्पना कीताकि सुरक्षित रहे मौर्य साम्राज्यइतना कुटिल था उनका मस्तिष्ककि इतिहास उन्हें जानता हैकौटिल्य के नाम से!John Lilith Painting -1887मुझे नहीं मालूमविवाह किया या नहींउस कुरूप ब्राह्मण नेपर इतना कह सकती हूँअवश्य ही मर गई होगीउसकी माताउसे जन्म देने के तुरंत बादअन्यथा कोईइतना स्त्री द्वेषी क्यों होता? कहते हैं, लिखा है कल्किपुराण मेंचित्रग्रीव गंधर्व की पत्नी सुलोचनासप्रयोजन… Continue reading