Rajeshwar Vashistha
मैं किसी पेड़ की तरह उगना चाहता हूँ!
मेरे पास मजबूत जड़ है, तना भी और पत्ते भी
पर मुझे नहीं मालूम
कि मैं पीपल बनूँ, नीम बनूँ, बुरूँस बनूँ या देवदार?
बस मैं एक ऐसा जादुई पेड़ बनना चाहता हूँ
जिस पर चिड़िएँ, गिलहरियाँ,
तितलिएँ और कोयल सब दिन-रात आएँ।
चारुस्मिता ने कहा – सुनो पेड़,
मुझे तुमसे प्रेम हो गया है।
मेरे पास एक भरी-पूरी दुनिया है,
खूबसूरत आँखें और मरमरी जिस्म है,
प्रेम-कविताएँ भी लिख लेती हूँ।
तुम जैसा प्रेमी मिल जाए
तो लोग शताब्दियों तक याद करेंगे हमें!
मैंने पूछा – मुझे सागौन या शीशम का पेड़ बनाना चाहती हो?
ताकि मेरी लकड़ी पर अपनी तस्वीर बना कर
उसके नीचे रुबाइयाते उमर खैयाम लिख सको!
या यूक्लिप्ट्स जैसा कोई मुलायम पेड़,
जिससे बने कागज़ पर छप सके तुम्हारी
तुकबंदी की किताब?
और उसके विमोचन के लिए
अपनी धोती संभालता हुआ चला आए कोई मंत्री!
उसने कहा – मैं जब प्रेम में होती हूँ
किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देती।
मेरे घर में असंख्य पेड़ पौधे हैं,
सभी कुलीन और संभ्रांत!
मैं हर सुबह अपनी चिड़ियों को दाना खिलाते हुए
हर पेड़ की एक-एक पत्ती अपने पल्लू से साफ करती हूँ।
हर नए खिले फूल का चित्र फेस-बुक पर अपडेट करती हूँ।
दिन भर ब्ल्यू-रे प्लेयर पर बजाती हूँ
बीथोवन की सिम्फनी!
तुम भूल जाओगे जंगली पक्षियों की कर्कश आवाज़ें।
मेरे पेड़ बिगड़ैल बच्चों की तरह ज़मीन पर नहीं लोटते,
उनकी शाखों पर कव्वे और कबूतर बींट नहीं करते।
उनकी जड़ों के पास विराजते हैं
भाँति-भाँति की मुद्राओं में ढेर सारे गणेश
कछुए और एंटीक कलाकृतियाँ।
मैं, उनकी जड़ों को
घर के मंदिर में, शिवलिंग पर चढ़ाए जल से
स्वयं तृप्त करती हूँ।
यहाँ अगर पेड़ मर भी जाएँ
तो सीधे स्वर्ग जाते हैं!
लोग मेरे अभिजात्य को
मुहावरे की तरह इस्तेमाल करते हैं।
मेरा प्रेम पाकर
तुम दुनिया भर के पेड़ों की भीड़ से अलग हो जाओगे,
तुम्हें लगेगा तुम कदम्ब के पेड़ हो
और राधा तुम्हें अपनी बाहों में भर कर
अलौकिक स्पर्श सुख दे रही है।
मैं तुम्हें अपने पलँग के सिरहाने
मक़बूल फ़िदा हुसैन की
सरस्वती रिप्लीका के पास स्थापित करूँगी,
लोग जानते हैं, मेरा घर एक सुंदर कला-क्षेत्र है!
मुझे लगता है,
हर पेड़ बाहें उठाकर पानी के लिए
दिन भर ताकता रहता है सूरज की ओर।
कौन साफ करता है उसकी पत्तियाँ?
किसके तने पर मचलती हैं
राधा की नाज़ुक सुंदर उँगलियाँ?
किसकी छाया में नृत्य करते हैं शिशु गणेश?
कौन से पेड़ के निकट रहती हैं सरस्वती?
सुनेत्रा,
तुम जल रही हो न मेरे भाग्य से?
---------
पगले, रो रही हूँ
चारुस्मिता, तुम्हें बोंसाई बनाने जा रही है!
Rajeshwar Vashistha
जोरदार लिखा आपने