Ajay Yadav
ज्यादा पुरानी नहीं, कुछ साल पहले की बात है। चाची की तबियत काफी बिगड़ गई थी, जब मैं हॉस्पिटल पहुँचा, कई डॉक्टर उन्हें घेरे हुए थे। वे अब कुछ बोल नहीं पा रही थीं। उन्होंने जब मुझे देखा तो लगा कि मेरी आँखों से वे अपने असहाय शरीर को निहार रही हैं। उनकी आंखें खत्म होती ज़िन्दगी की बेबशी कह रही थी। जब उनकी हथेलियों को मैंने अपने हाथ में लिया, उनके आंखों से आंसुओं की अशांत धारा बह निकली थी। उनकी हथेलियां खुरदुरी हो चुकी थी, हाथ-गाल और माथे में ठंढक तैरने लगी थी।
बगल में चाचा खड़े थे। बीच-बीच में चाचा हंसते हुए बोल रहे थे- "क्या कह रही हैं?...कैसी हैं?"
अपनी पत्नी से बात करने का यही तरीका था चाचा के पास! अगर मैं या डॉक्टर यहां से चले जाते तो चाचा भी चले जाते। अपनी 'पत्नी' के साथ अकेले खड़ा होना 'चोरी' पकड़े जाने-सा था। अपनी पूरी ज़िंदगी उन्होंने ऐसे ही जिया और ज़िन्दगी का यह तरीका उन्हें भी विरासत में ही मिला था। जब पूरी दुनियाँ सो जाएं तो लोग छिपते-झिझकते अपनी बीवियों के पास जाते थे और घर जागने से पहले निकल आते थे। चाचा, मेरे पिता, उनके पिता, पिता के पिता...ऐसे ही आते-जाते रहे, जीवन चक्र चलता रहा... हमारे समाज में बीवियां लाश की तरह अंधेरे में लेटी रहीं, कभी ठीक से एक-दूसरे के चेहरे निहार नहीं पायीं, कभी चरम अवस्था में पुरुष के उपर चढ़ नहीं पायीं, 'चरित्रहीन' समझे जाने से बचती रहीं...
ऐसी ही 'बचती हुई' स्त्री आज 'मृत्यु शैया' पर लेटी हुई थी, लेकिन उसके साथ पूरी ज़िंदगी गुजार दिया 'मर्द' आज भी बात करने से झिझक रहा था। बहाने से करीब आने की कोशिश कर रहा था। बेचैन था, खुद को महज अभिभावक दिखाने की कोशिश कर रहा था। मैंने डॉक्टरों को वहां से जाने को कहा और चाचा के पास चला गया!
"चाचा...चाची के पास बैठकर हाल-चाल कर लेंगे तो चाची को कितना अच्छा लगेगा!"
चाचा का हाथ पकड़कर चाची के पास बैठा दिया। चाची की हथेलियाँ चाचा के हाथ में थमा दी। मैं जानता था कि अगर ऐसा नहीं करूंगा तो चाचा बुत की तरह बैठे रहेंगे। और चाचा ने एक बार चाची का हाथ पकड़ा तो पकड़े ही रहे...घंटों! जब चाचा ने कहा- "लगता है छोड़कर चली गईं.." चाचा अनाथ मासूम बन गए थे!
बाद में चाचा जी भी गुजर गए, लेकिन चाची के गुजर जाने बाद मेरे दोस्त से बन गए थे। कई बार साथ सिगरेट भी पी। आज मैं सोचता हूँ कि कैसे लोग थे वे! सेक्स को परंपरा की तरह जिया, बच्चे पैदा किया, वो भी खुलकर प्रेम के इजहार के बिना! सच पूछिए तो ऐसे लोग 'हस्तमैथुन' से ज्यादा ज़िन्दगी ज़ी नहीं पाए। 'बिना प्रेम का सेक्स'!!!
लेकिन आज के जीन्स-टाप्स पहने, खुद को आधुनिक कहते लड़के-लड़कियों की भी हालत उनसे बहुत अलग नहीं है। ऐसे ढेर सारे लड़के-लड़कियों को मैंने अपनी ज़िंदगी में देखा, जो प्रेम को सेक्स से अलग करके ज़िन्दगी जीते रहे। प्रेम को 'पवित्र' कहते रहे और सेक्स को 'गंदा' मानते रहे। हाथों में गुलाब थामे, वेलेंटाइन डे मनाते ये लोग 'सेक्स' को टैबू बना लिए। अरे, 'बिना सेक्स सिर्फ प्रेम' महज 'योगा' ही है, उससे ज्यादा कुछ नहीं, और ये योगी आज भी कॉलेज, रेस्टोरेंट्स, पार्क, मॉल में योग करते घूम रहे हैं।
इन सबसे बहुत आधुनिक तो अपने 'शिव' हैं, जिन्हें 'अर्धनारीश्वर' कहा जाता है। अर्धनारीश्वर का मतलब उस 'परममिलन' से है, जिसमें आपका ही आधा व्यक्तित्व आपकी पत्नी/प्रेमिका का अहसास ग्रहण कर लेता है और आपकी पत्नी/प्रेमिका का व्यक्तित्व आपके अहसास को जीने लगता है। दोनों के भीतर जो रस और लीनता पैदा होती है, वही तो जीवन का चरम आनंद है, वही तो हमारे-आपके अस्तित्व का मूल है।
और इसी सच का मूर्त रूप है 'शिवलिंग'! अगर पुजारीवाद/पंडा-धंधावाद से मुक्त होकर सोचें तो 'शिवलिंग' से ज्यादा रियल कोई 'प्रतिमा' नहीं। पदार्थ और चेतना का सूत्र!!!