सीखने की कला के बिना स्कूली शिक्षा के दुष्परिणाम

Sachin Raj Singh Chauhan[divider style=’right’]

विश्व विकास रिपोर्ट 2018 के अनुसार स्कूलिंग विदाउट लर्निंग ने न केवल विकास के अवसरों को बर्बाद कर दिया है बल्कि वैश्विक स्तर पर बच्चों के प्रति घोर अन्याय किया है। इसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलने लगे है। अकेले ग्रामीण भारत में विद्यालयों के तीसरी कक्षा के 75 प्रतिशत छात्रों को दो अंको के घटाव नही आते। 12 देशों की सूची में मलावी के बाद भारत दुसरे रैंक पर है जहां कक्षा 2 के बच्चों को संक्षिप्त पाठ का एक शब्द पढ़ने में भी समस्या होती है। इस रिपोर्ट में लर्निंग क्राइसिस पर जोर देते हुए चेताया गया है कि इसी कारण निम्न और मध्यम आय बाले देशो के युवाओं को निम्न मजदूरी पर काम करना पड़ता है। हमारी शिक्षा व्यवस्था जितनी अधिक लर्निंग बेस्ड होगी हम उतना ही बेहतर जीवन की तरफ अग्रसर होंगे।

विडम्बना है कि जिस देश में 38 प्रतिशत बच्चें सही पोषण के अभाव में जीने को विवश है,19 करोड़ कुपोषित लोग है (यू न के एक रिपोर्ट के अनुसार) और जहां बुनयादी जरूरते भी पूरी न होती हो वहां हम कहते है कि विकास हो रहा है, देश एक बड़ी आर्थिक ताकत हो गया है, दुनिया नत-मस्तक होती है और वगैरा-वगैरा सारा बेमानी प्रतीत होता है। विकास का मतलब या तो समझ नही आता है इनको या फिर समझना नही चाहते। आज देश उस मोड़ पर आ गया है जहां परिवार के दो सदस्य करोड़ों रुपये कमाते है , संसाधनों का दोहन करते है और जिंदगी को पूरी शान-शौकत से गुजारते है जब कि इसके इतर परिवार के बाकी सभी सदस्य दर- दर की ठोकरे खाते है, उनकी वुनयादी जरूरते भी पूरी नही ही पाती। अकेले दिल्ली – एनसीआर में कई लाख लोग पिछले 1 साल में वेरोजगार हुए है जिसके चलते कई परिवारों की जिंदगी तवाह हो गयी। मुझे ये समझ नही आता कि राफ़ेल डील, 1.10 लाख करोड़ का बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट अभी जरूरी था या फिर करोड़ो लोगों की बुनयादी जरूरते पूरी करना।

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