राहुल गाँधी बनाम उन पर लगाए जाने वाला वंशवाद का इल्ज़ाम !

Razia S. Ruhi[divider style=’right’]

डॉक्टर का बेटा एक अच्छा डॉक्टर बन सकता है, इंजीनियर का बेटा एक काबिल इंजीनियर बन सकता है, चिरौंजी लाल का बेटा उसकी किराने की दुकान संभाल सकता है, ऋषि कपूर का बेटा रॉक स्टार बन सकता है, और इस सब में कहीं किसी का वंशवाद आड़े नहीं आता बल्कि इन क्षेत्रों में तरक्की ये अपने हुनर की बदौलत करते हैं। सवाल यह उठाए जा सकते है हमने परम्परा में जो व्यवस्था बना रखी है उसमें कितने लोगों को अपना पहला मौका या हुनर चमकाने का समय ही नहीं मिलता.  लेकिन इस तर्क से भी जिस व्यक्ति को मौका मिला है वह गलत नहीं हो जाता है.

इन सब के बाद भी अकेले राहुल गांधी पर वंशवाद का इल्ज़ाम क्यों?

राहुल के ऊपर कोई हत्या बलात्कार या गुंडा एक्ट का मुकदमा नही है, राहुल ने न लड़की छेड़ी है, न किसी लड़की की जासूसी करवाई है,  राहुल बाकी के कई नेताओं की तरह बेहूदी असभ्य भाषा भी नहीं बोलते.. राहुल बाकी के कई नेताओं की तरह साम्प्रदायिक नफ़रत के बीज बो कर वोट नहीं मांगते.. जबकि इन सब तरीको से राजनीति में चमकना आज के भारत में सबसे आसान काम बना हुआ है, राहुल का इस बात के लिए तो स्वागत होना ही चाहिए की वह राजनीति के सकारात्मक पहलू को स्वीकार न किए जाने के बावजूद एक ऐसे पौधे के रूप में संघर्ष करके उभरा है जो बेहतर आज की बात करता है.  इन सब पर भी राहुल गांधी भले ही सर्वोत्तम विकल्प न हों लेकिन जब तक राहुल ऐसी कोई गलती नहीं करते तब तक वो इन बाकी के कई नेताओं से कहीं बेहतर विकल्प जरूर हैं।

मुझे उनके वंशवाद से कोई समस्या नहीं है, मुझे उनकी उनकी निजी जिंदगी में झाँकने का कोई हक़ नहीं है… मुझे सिर्फ़ उनके सार्वजनिक व्यवहार और राजनीतिक नज़रिए से मतलब है, उनका आंकलन इसी आधार पर होगा।। आप राहुल गांधी के अंधविरोधी हो सकते हैं, और अंधविरोधियों को विरोध और आलोचना का बहाना चाहिये बस.. तो वंशवाद एक अच्छा बहाना है। हो सकता है राहुल गाँधी मौका मिले तो एक अच्छे प्रधानमंत्री भी साबित हो । जो तमीज़, अदब, सभ्य ब्यवहार और सुशीलता दिखती है उनमें उससे इतना तो तय है कि उनके भीतर तुग़लक़ नहीं जागेगा। जो पार्टी और ज्ञानी पॉलिसी मेकर्स कहेंगे उनके अनुसार फैसला लेंगे । होने को तो आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, ग़ुलाम नबी आज़ाद ज्यादा अनुभवी और विद्ववान राजनीतिज्ञ हैं, और भी कई हैं। पर राहुल गाँधी के नाम पर ही कांग्रेस फ़िलहाल जी सकती है, और शायद यही डर ही कारण भी है विरोधी पार्टियों द्वारा उनके अंधविरोध का.. हो सकता है सोनिया गाँधी की तरह ही राहुल भी किसी और को प्रधानमंत्री बनने को बोल सकते हैं, कम से कम लोलुपता तो नहीं दिखाई देती उनमें..  अंतर्राष्ट्रीय और कूटनीतिक हलकों में ब्लू ब्लड कांसेप्ट अभी भी जम कर चलता है। वह एक्सेप्टेबिलिटी भी इंडिया के फेवर में ही होगी.. लेकिन मेरा कहना है कि कांग्रेस का अध्यक्ष चुनने का हक़ कांग्रेस के सदस्यों को ही है, वो चाहें तो राहुल गांधी को चुनौती दे सकते हैं, जनता को यदि राहुल अपने नेता के तौर पर पसंद न हों तो वो उन्हें आम चुनाव में हरा सकती है, लेकिन यदि तमाम आपराधिक मुकदमों के बावजूद राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जा सकते है बाकी लोगों को हाशिये पर धकेला जा सकता है, बाहर निकाला जा सकता है तब यह नैतिक अधिकार नहीं ही बनता है कि वे राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुने जाने की आलोचना करें.. जिम्मेदार पद पर रहते हुए तमाम अलोकतांत्रिक कारनामों को अपना मौन समर्थन देने वाले नेता/लोग जब वंशवाद पर ट्वीट करते हैं तो बड़े हास्यास्पद लगते हैं।

 

 

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