शिवरात्रि का बोध उत्सव

Tribhuvan

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मित्रो, फ़ेसबुक पर बहुत तीखी बहसें की हैं। टिप्पणियां की हैं। आपको बहुत बार बुरा भी लगा होगा। किसी ने गाली दी, किसी ने सलाह दी और किसी ने नेकनीयती से लिखने को कहा। किसी ने कहा कि मैं तटस्थ होकर रहूं और किसी हितचिंतक ने परामर्श दिया कि मुझे निष्पक्षता से काम लेना चाहिए।

मैथ्स का छात्र रहा हूं। इसलिए माना कि से ही काम चलाता हूं। माना कि आप ऐसे हैं, माना कि आप वैसे हैं। लेकिन मैथ्स ने यह भी सिखाया है कि इति सिद्धम या क्यूईडी तभी होता है जब हम दो या तीन फार्मूलों से उस माना कि को सिद्ध कर लें। बीज गणित हो या अंकगणित या त्रिकोणमिति।

बहुत बार मैंने लिखा भी है कि मेरी वह मान्यता है, जो आप सबसे विचार करने के बाद बनेगी। अभी जो लिख रहा हूं या कह रहा हूं, वह मेरी मान्यता नहीं है। यानी सब तर्क-वितर्क और तथ्य जान लेने के बाद हम जो फ़ैसला करते हैं, वही मान्य होना चाहिए। सिद्धांत भी यही है। विज्ञान भी यही सिखाता है।

हमें लॉ की क्लास में त्यागी जी कई बार एक जज का किस्सा सुनाते थे। एक महिला बोली : जज साहब, जब मेरी खिलाफ पार्टी के वकील साहब बोले तो आपने कहा, यू आर राइट, जब मेरा वकील बोला तो आपने कहा, यू आर राइट। ये भला कोई कोई न्याय की बात हुई जजसाहब? जज बोले : यू आर आल्सो राइट!

फ़ेसबुक पर इतनी लंबी बहस और इतनी तीखी प्रतिक्रियाओं के बाद मुझे लगता है कि मंथन एक निष्कर्ष पर पहुंचा है। और वह निष्कर्ष यह है कि हमें ऐसे नए विकल्प तलाशने बंद करने चाहिए, जो जड़तावाद या यथास्थितिवाद को बढ़ाते हों। हमें अपने प्रतिपक्षी की राय को सुननाचाहिए। चाहे वह कितनी भी कड़वी हो। लेकिन हमें अपनी पार्टियों और उनके आचरण में सुधार की मांग करनी चाहिए।

यह देश और समाज तब बढ़िया बनेगा, जब एक बेहतर बीजेपी, एक बेहतर कांग्रेस, एक बेहतर कम्युनिस्ट पार्टी, एक बेहतर समाजवादी पार्टी, एक बेहतर बसपा, बेहतर तृणमूल हमारे देश में होगी। आप अपनी नीति के अनुसार चलें, लेकिन ईमानदारी बरतें। पारदर्शिता रखें। सब आपस में एक मर्यादित भाषा में बहस करें। खुलकर बोलें और एक दूसरे से प्रेम रखें।

यह देश बेहतर और ताकतवर तब बनेगा, जब हम अपने अतीत की गलतियों से सीखेंगे और अपने देश की मौजूदा प्रतिभाओं का, कलाकारों का, साहित्यकारों का, इतिहासकारों का सम्मान करेंगे। यह परंपरा देश में बहुत पुरानी है। कोई आपके विचार का नहीं है, इसलिए आप उसे सांप्रदायिक या देशद्रोही घोषित कर दें, यह संकीर्णता आपका नहीं, इस देश का नुकसान करती है।

हमारा देश, हमारी दुनिया और हमारी धरती माता इस समय भयावने खतरों से जूझ रही है। ग्लोबल वार्मिंग के खतरे का अजगर जीभें लपलपा रहा है। यह मानव समुदाय के लिए एक बड़ा खतरा है। जनसंख्या अपार ढंग से बढ़ रही है। यह जल्द ही 9.5 बिलियन होने जा रही है और हमारी धरती माता सिर्फ़ और सिर्फ़ आठ बिलियन जनसंख्या को वहन करने की ही क्षमता रखती है।

कृषि का संकट एक नया खतरा हो गया है। किसान डूबता जा रहा है। पर्यावरणीय, मानवीय और सरकारी फैसलों ने कृषि को ऐसे विकराल दौर में ला दिया है, जहां अन्न उत्पादन गिरने वाला है और जनसंख्या बढ़ने वाली है। पिज्जा और बर्गर संस्कृति की गोद में अनचाहे ही हमें पटका जा रहा है। खेती का एरिया सिमटता जा रहा है।

जल संकट एक और विकराल समस्या बनने जा रही है। पीने का जो पानी कभी पवित्र था और जिस शीतल जल के लिए हमारे बड़े-बुजुर्ग प्याऊ खोला करते थे, उस महान् संस्कृति को कार्पाेरेट कल्चर काल कवलित कर गई है और दूषित पानी सड़े हुए प्लास्टिक की दूषित बोतलों में बिक रहा है। यह मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। जिस पानी के कारण आपको सबसे ज्यादा बीमारियां होने का डर फैलाया गया, उसका बोतलबंद विकल्प अब हमारे शहरों में अस्पतालों का एक जंगल खड़ा हो चुका है।

और सबसे बड़ा और पांचवां खतरा यह है कि ऐसी बीमारियां दस्तक दे रही हैं, जिन पर इनसान जीवन भर की कमाई खर्च कर देता है, लेकिन फिर भी स्वस्थ नहीं हो पाता। हमारे विश्वविद्यालय विवादों में लाकर हमारे आत्मसंस्कारों की संस्कृति को विनाश की तरफ धकेला जा रहा है। विकल्प ये है कि हम अपनी महान् रवायतों को और संस्थानों को नष्ट नहीं होने दें, बल्कि उनमें कुछ खराबी है तो उसे दुरुस्त करके और बेहतर बनाएं।

मित्रो, ये ऐसे ख़तरे हैं और इतने भयावने हैं कि इनका हल किसी कम्युनिस्ट पार्टी, किसी कांग्रेस, किसी आरएसएस, किसी तृणमूल, किसी बसपा, किसी आम आदमी, किसी अभियान, किसी एनजीओ, किसी सरकार या किसी जाति, किसी धर्म या किसी संस्कृति के पास नहीं है। किसी इस्लाम, किसी हिन्दू, किसी बौद्ध, किसी क्रिश्चियनिटी या किसी ताओइज्म के पास नहीं है।

हल है, लेकिन सब मिलकर करें और एक कॉमन मानव समुदाय के हित को लेकर चलें तो। मिलकर लड़ें तो।

ये सब दल, सब संस्कृतियां, सब धर्म और सब राजनीतिक दल और उनसे ऊपर के बहुतेरे संगठन, एक कालखंड में लोगों ने उस काल की समस्याओं को लेकर तैयार किए थे। अगर इस्लाम हल होता तो आज दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलिम ही मुसलिमों के आपसी संघर्ष में नहीं मारे जाते। ठीक ऐसा ही हिन्दुओं और ऐसा ही अन्य धर्मों के साथ हैं।

मानव समुदाय को एक होकर ही आगे बढ़ना होगा। अब समय आ गया है कि हम जाति, नस्ल, धर्म और राष्ट्र के नाम पर लड़ना बंद करें। आज राष्ट्रीयतावाद भी एक नया खतरा बन गया है, क्योंकि जितनी भी समस्याएं हैं, उनकी विकरालता ऐसी है कि उनके सामने हमारे राष्ट्रों की क्षमता भी कमतर है। अब इस्लाम को हिंदुत्व के साथ अपनी सकारात्मकताआें के साथ कंधा मिलाकर चलना होगा और हिंदुत्व को इस्लाम के साथ। भारत को पाक के साथ और पाक को भारत के साथ।

आपके समस्त विश्वास पवित्र और पावन हैं। आपके सब राष्ट्र महान हैं। आप उनका सम्मान करें, लेकिन धर्मों, जातियों, राष्ट्रीयताओं और सांस्कृतिक श्रेष्ठताओं के अहंकारों के विष को शिव की तरह पीकर अपने कंठ में स्थापित कर लें। नीलकंठ बनें। नीलकंठ की पूजा करनी है तो उसकी गगनचुंबी प्रतिमा नहीं बनाएं। धन का अश्लील प्रदर्शन नहीं करें। धर्म का कार्पोरेटाइजेशन नहीं करें। धर्म को धर्म रहने दें।उस धन को अशिक्षा, गरीबी, दु:ख, तकलीफ़, पिछड़ापन, गुरबत, भेदभाव, अत्याचार और जुल्मोसितम मिटाने के लिए खर्च करें। यही सच्चा शिवत्व है। बाबा लोग जो मूर्तियां बना रहे हैं, वह शिवत्व नहीं है। वह शिवत्व का अपमान है।


Credits: Tribhuvan’s Facebook wall

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