डॉ निर्भय सिंह गौड़ एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपनी इच्छा शक्ति से एक खंडहर होते चिकित्सालय का कायाकल्प कर दिया

Rishi Raj

कायाकल्प एक्सटर्नल अससेस्मेंट प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सकरार, ब्लॉक बंगरा जनपद झाँसी।
यथा नाम तथा गुण


कायाकल्प जैसा नाम में ही निहित है अगर देखा जाय तो सकरार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ने कर दिखाया, जिस इकाई ने इंटरनल असेसमेंट में स्वयं ही 25% किया था मात्र 2 माह में पूरी कायाकल्प करते हुए जनपद की श्रेष्ठ इकाइयों को टक्कर देते हुए अपने को समकक्ष खड़ा कर दिखाया जिनके पास अच्छी और नयी बिल्डिंग, वित्त आदि तमाम व्यवस्थाये थी, उनको चुनौती दे दी। बताना न्यायोचित होगा विकासखंड की अन्य स्वास्थ्य इकाइयों पर स्वास्थ्य सेवाओं, विशेषज्ञ, स्टाफ , फंड आदि का प्रायः टोटा ही रहता है परंतु पुरे स्टाफ ने जो मेहनत की वो काबिले तारीफ है जो लोग साथ नहीं आये उनको छोड़ा जो साथ थे उनसे जोर लगाया।

"डी पी एम साहब क्या हमारी इकाई कायाकल्प प्रतिस्पर्धा से बाहर नहीं हो सकती?? कुछ हो सके तो इसको बाहर करवा दीजिये हमारे लिए सरदर्द हो जायेगा सारे अधिकारी हमारे ऊपर ही चढ़ बैठेंगे" विकास खंड प्रभारी चिकित्साधिकारी आकर बोले। भरोसा दिलाया गया पूर्ण सहयोग का, पीयर असेसमेंट में स्टाफ को बैठाकर काउंसलिंग की गयी क्योंकि स्थितियों में कोई सुधार नहीं दिखाई दे रहा था। थोड़ी डाँट मुख्य चिकित्साधिकारी महोदय द्वारा दिलवाई गयी लेकिन अंदर ही अंदर हिम्मत जवाब दे रही थी।

अकेले एक ही चेहरा दिखाई दे रहा था वो था सकरार के प्रभारी चिकित्साधिकारी को जो शायद 8 या 9 महीने बाद रिटायर हो जायेंगे, उनके संकल्प से विश्वास टूट नहीं रहा था उनको ललितपुर में काम करते देख चुका था, वो अकेले लगे थे। वो पत्नी से घर से हथौड़ी बैग में छुपा कर ले जाते थे कील ठोकने को। एक बार मालुम हुआ लड़की को लेने गए थे तो फोन करके बता दिया मैं रास्ते में उतर जाऊंगा क्योंकि असेसमेंट होने वाला है।

मुझे ज्ञात हुआ मेरी ही ड्यूटी लगी है एक्सटर्नल असेसमेंट में तो मन नहीं था जाने का क्योंकि मैं नहीं चाहता था डॉ साहब का दिल टूट जाए, संभावनाएं जो दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रही थी और एक्सटर्नल होने के नाते मैं पक्षपाती नहीं होना चाहता था। डीपीएमयू में एक और व्यक्ति था जो कहीं न कहीं अपने प्रयासों में लगा था डा० मनीष खरे जिला क्वालिटी परामर्शदाता झाँसी। वो सभी इकाइयों पर ध्यान दे रहे थे लेकिन डॉ साहब की मेहनत को देखते हुए अवकाश के दिनों में भी पूर्ण सहयोग और मार्गदर्शन दे रहे थे। 

परिस्थितियां विकट और हो गयीं जब पता चला कि वार्षिक रोगी कल्याण समिति का फंड विगत वर्ष समय से सही जगह बुक ना करने से इस वर्ष प्राप्त ही नहीं हुआ ऐसे में विकास खंड प्रभारी चिकित्साधिकारी डा० विनीत कुमार और ब्लॉक कार्यक्रम प्रबंधक प्रवीण द्विवेदी भी डॉ साहब के साथ हो लिए ब्लॉक अधिकारी डॉ मनीष खरे को स्पष्ट कह देते थे सस्ता नहीं बढ़िया खरीदिए अब पीछे नहीं हटेंगे अब तो इज़्ज़त का सवाल है, प्रवीण दस्तावेज़ीकरण, बैठकें आदि प्रबंधकीय कार्य में ऑफिस के बाद समय देने लगे और डॉ साहब तो खैर थे ही। मुख्य चिकित्साधिकारी डा० विनोद यादव जी को भी मेहनत दिखाई दे रही थी उन्होंने भी महीने में 4 से 5 चक्कर बार बार लगाये, आसान नहीं होता जिले को देखने के साथ साथ एक इकाई पर ध्यान देना। यहाँ तक कि एक दिन पहले भी 2 चक्कर खुद लगाकर आये।

असेसमेंट वाले दिन जब वहां पहुंचने वाले थे तो मण्डलीय परियोजना प्रबंधक श्री आनंद चौबे जी से कहा चूँकि मेरा ही जनपद है अतः आपको ही असेसमेंट करना है रिकॉर्ड वगेरह का अवलोकन मैं कर लूंगा अन्यथा पक्षपाती होने का संदेह है उन्होंने भी मूक सहमति दी। जब हुआ और जो देखा जो निकल कर आया वह अप्रत्याशित था सही मायने में "सीमित संसाधनों में वास्तविक कायाकल्प"। हो सकता है बहुत कमियां हो लेकिन जो पहले था और जो अब पाया वो उन कमियों से बहुत ऊपर था।

डॉ साहब जो रिटायरमेंट के करीब है उनसे सीखा कि सीखने और करने की कोई उम्र नहीं होती। आप जब खुद साधना (मेहनत) करते है तो ईश्वर आपको हाथ में लेता है रास्ते भी खुलते हैं लोग भी जुड़ते हैं। आत्म संतुष्टि से बढ़कर कोई परिणाम नहीं होता। आज दशरथ मांझी को हर कोई जानता है परिणाम आने के बाद, ऐसे ही कई दशरथ स्वास्थ्य विभाग में भी है जो अपने ही तरीके से प्रयासों में लगे है जो दशरथ मांझी बन जातेे है जिनको हम जान लेते है कुछ अनछुए ही रह जाते हैं

Rishi Raj

District Program Manager,
National Health Mission
Uttar Pradesh

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