गांधी का हत्यारा विचार नहीं पूर्वाग्रह युक्त मिज़ाज तैयार करता है

आज कई फेसबुक पोस्टों से आभास हुआ कि अतिवादी दलित-पिछड़ा हों या वामपंथी दोनों ही गांधी के कट्टर विरोध में खड़े हैं. गाँधी की आलोचना नहीं बल्कि गांधी को गरियाते-लांछन लगाते ये पोस्ट और कमेन्ट वस्तुतः बिना किसी नुक्ते के हेर-फेर के संघ की साजिश का कॉपी-पेस्ट ही दिखाई देते हैं. रत्ती भर भी फर्क नहीं. यह भी बताया जाता है कि उनके द्वारा बताये जा रहे किस्से-कहानियाँ जो किसी कुंठित… Continue reading

गांधी का वध तो हर क्षण ही किया जा रहा है

गांधी जी को मैं भारत के अंदर अपनी सामाजिक क्रियात्मकता का गुरु मानता हूं। जहां तक भी मेरी दृष्टि जाती है मुझे पूरी शताब्दी में गांधी के इतना भारत को समझनें, जीनें वा प्रेम करनें वाला मनुष्य नहीं दिखता है। गांधी को गलियानें वाले लोगों का अधिकतर प्रतिशत उन लोगों का ही है जिनकी पहली प्राथमिकता मनुष्य और मनुष्यों का समाज नहीं है। और इनमें से अपवादों को छोड़कर लगभग… Continue reading

काश हम धूर्त, अवसरवादी, मक्कार, स्वार्थी, परजीवी, लंपट, भोगवादी और कामचोर आदि न होते तो कम से कम आजादी, आजादी के लिये संघर्ष करनें वाले पूर्वजों और गणतंत्र का निरादर और मजाक न उड़ाते होते

भारत नें दो प्रकार की गुलामियां झेलीं हैं वह भी लगातार। पहली हजारों सालों की निरंतर “सामाजिक गुलामी” जो कि जातिवाद जैसी घिनौनी सामाजिक हिंसा, धूर्तता और षणयंत्र आदि से कूट कूट कर भरी हुयी थी। दूसरी सैकड़ों सालों की निरंतर “राजनैतिक गुलामी”। जिस समय देश में सड़कें नहीं थीं, संपर्क मार्ग तक नहीं थे, संचार माध्यम नहीं थे, देश की 85% से अधिक जनसंख्या को शिक्षा के अधिकार नहीं… Continue reading

सलीके का मतलब

सलीके का मतलब: आप खाते कैसे हैं, पाखाना बैठकर करते हैं या कुर्सी नुमा ढांचे में बैठकर करते हैं, पानी कैसे पीते हैं मसलन गिलास में कुछ पानी छोड़ देते हैं या नहीं छोड़ देते हैं, चाय कैसे पीते हैं मसलन कप में आवाज/बेआवाज चुस्की या प्याली में सुरसुराकर पीते हैं, टाई कैसे बांधते हैं, मेहमान के आनें पर अंदर से गालियां देते हुये भी चेहरे में बड़ी और खूबसूरत… Continue reading